Muharram 2021: मुहर्रम पर क्यों रहता है मातम? जानिए क्या खास वजह है ताजिया निकालने के पीछे

दोस्तों आपको पता है कि मुहर्रम क्यों मनाया जाता है? इस दिन मुस्लिम समुदाय ताजिया क्यों निकालते? मुहर्रम के पर्व को गम और मातम के माहौल में मनाने के पीछे खास वजह क्या है? इन तमाम सवालों के जवाब आज हम आपको इस आर्टिकल बताने वाले है-

इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक मुहर्रम एक महिना है और इस्लाम धर्म में नए साल की शुरुआत भी मुहर्रम महीने से होती है. वहीं इस्लाम धर्म में मुहर्रम के महीने को सबसे ज्यादा पवित्र माना गया है. क्योंकि इस महीने में इस्लाम धर्म के संस्थापक पैगंबर मोहम्मद साहब मक्के से मदीना के लिए गए थे.

मुहर्रम क्यों मनाते हैं?

इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की शहादत की याद में यह मुहर्रम पर्व दुनियाभर के मुसलमानों द्वारा मनाया जाता हैं. इमाम हुसैन जो कि पैगंबर मोहम्मद की पुत्री के पुत्र यानी दोहिते थे, जिन्होंने आज से करीब 1400 वर्ष पूर्व मुहर्रम के महीने में 10 तारीख को इस्लाम को बचाने के खातिर कर्बला की जंग में अपनी कुर्बानी दे दी थी, इस दौरान हुसैन के 72 अन्य साथी भी कुर्बान हो गए थे.

क्यों हुई थी कर्बला की जंग?

1400 साल पहले मुहर्रम के 10वें दिन इस्लामिक तारीख 10 को कर्बला में जुल्म के खिलाफ इंसाफ के लिए एक जंग लड़ी गई थी, बताया जा रहा है कि इस्लाम धर्म के धार्मिक स्थल मदीना से कुछ दूर ‘शाम’ में मुआविया नामक एक शख्स का शासन था.

इस मुआविया शासक की मौत हो जाने के बाद उनका उत्तराधिकारी इस्लाम धर्म के खिलाफ चलने वाला यजीद नाम का एक शख्स बना. मगर यजीद चाहता था कि उसके उत्तराधिकारी बनने की पुष्टि भी पैगंबर साहब के नाती इमाम हुसैन से ही करावें, क्योंकि उनका वहां के लोगों पर अच्छा प्रभाव था. लेकिन मोहम्मद साहब के घर वालों ने यजीद जैसे शख्स को इस्लामी शासक मानने से साफ इनकार कर दिया और दुखी होकर इमाम हुसैन और उसके परिवार वालों ने मदीना छोड़ने का निर्णय ले लिया.

जब मुहर्रम महीने की 1 तारीख को मदीना छोड़कर इमाम हुसैन अपने परिवार और कुछ चाहने वालों के साथ इराक जाने लगे तो कर्बला के निकट यजीद की फौज ने उनके काफिले को घेर लिया. इस दौरान यजीद ने उनके सामने कुछ शर्तें रखीं, जिन्हें इमाम हुसैन ने मानने से साफ इनकार कर दिया. इमाम हुसैन ने उनकी शर्तें नहीं मानी तो उसने जंग लड़ने की बात रख दी. लेकिन हुसैन इस बात पर भी सहमत नहीं हुए. क्योंकि वे नहीं चाहते थे जंग लड़ना. इसलिए कि उनके काफिले में केवल 72 लोग ही शामिल थे, जिसमें इमाम हुसैन का छह माह का बेटा, उनकी बहन-बेटियां, पत्नी और छोटे-छोटे बच्चे शामिल थे.   

इस दौरान इमाम हुसैन यजीद की बातों से दुखी होकर इराक के रास्ते में ही अपने काफिले के साथ फुरात नदी के किनारे तम्बू लगाकर ठहर गए. लेकिन यजीदी फौज ने इमाम हुसैन के तम्बुओं को फुरात नदी के किनारे से हटाने का आदेश दे दिया और उन्हें नदी से पानी पीने की इजाजत तक नहीं दी.

इमाम हुसैन इस विकट परिस्थिति में भी सब्र रखते हुए जंग को टालते रहे. इस दौरान उनके पास जो खाने-पीने की सामग्री थी वह सबकुछ सात दिनों में ख़त्म हो चुकी थी. इसके बाद 7 से 10 मुहर्रम तक वे सभी भूखे-प्यासे रहे.

10वें मुहर्रम के दिन हुसैन का एक-एक साथी शख्स यजीद की फौज से जंग लड़ने के लिए गया, जिसमें सारे साथियों का क़त्ल कर दिया गया. तब दोपहर की नमाज पढने के बाद इमाम हुसैन खुद अपने छह माह के पुत्र असगर अली को गोद में लिए इस जंग में गए, जहां पहले तो उन्होंने प्यास से तड़प रहे अपने छह माह के बेटे को पानी पिलाने की गुजारिश की, लेकिन यजीद की फौज का उनके छह माह के प्यासे बेटे पर भी बिल्कुल दिल नहीं पसीजा. इस दौरान पानी की प्यास से तड़पते हुए उस मासूम ने भी उन सभी के सामने दम तोड़ दिया और यजीद की फौज द्वारा इमाम हुसैन का बेरहमी से क़त्ल कर दिया गया.

इमाम हुसैन ने इस्लाम और मानवता के लिए अपनी जान की कुर्बानी दी थी। इसी कुर्बानी की याद में मोहर्रम मनाया जाता है और उसी के गम में मुहर्रम की 10 तारीख को ताजिए भी निकाले जाते हैं. कर्बला का यह वाकया इस्लाम की हिफाजत के लिए हजरत मोहम्मद के घराने की तरफ से दी गई कुर्बानी है. इराक की राजधानी बगदाद के दक्षिण पश्चिम के कर्बला में इमाम हुसैन का तीर्थ स्थल भी हैं.

मुहर्रम मनाने का तरीका अलग-अलग

शिया और सुन्नी समुदाय के लोगों का मुहर्रम मनाने का तरीका अलग-अलग है. मुहर्रम पर ताजिया निकालने की परंपरा सिर्फ शिया मुस्लिमों द्वारा ही निभाई जाती है, शिया समुदाय के लोग मुहर्रम पर मातम करते हैं. मजलिस पढ़ते हैं और भूखे-प्यासे रहकर शोक मनाते हैं. जबकि सुन्नी समुदाय के लोग रोजा रखकर अपना दुख जाहिर करते हैं. इस समुदाय के लोग ताजिया नहीं निकालते हैं. मुस्लिम समुदाय का इस दिन भूखा-प्यासा रहने का कारण यही है कि इमाम हुसैन और उनके काफिले के लोगों को भूखा-प्यासा रखकर उनका क़त्ल कर दिया गया था.

Share to Your Friends Also

Leave a Comment